कितना सव्छ्न्द है ये सपना ,
किसी भी पलकों पर अपना घर बना लेता है,
मिले ना मिले मंजिल ,
बस कर आबाद से निगाहों में फ़ना बना देता है .
Sunday, April 11, 2010
कितना सव्छ्न्द है ये सपना
कितना सव्छ्न्द है ये सपना ,
किसी भी पलकों पर अपना घर बना लेता है,
मिले ना मिले मंजिल ,
बस कर आबाद से निगाहों में फ़ना बना देता है .
किसी भी पलकों पर अपना घर बना लेता है,
मिले ना मिले मंजिल ,
बस कर आबाद से निगाहों में फ़ना बना देता है .
Saturday, April 10, 2010
डर गया दिल तेरे मेरे रुसवाई के डर से
आज के हालत का इम्तिहान दे सकती थी,
दिल के ज़ज्बात क्या जान दे सकती थी,
डर गया दिल तेरे मेरे रुसवाई के डर से,
वरना हर शायरी में तेरा नाम दे सकती थी.
दिल के ज़ज्बात क्या जान दे सकती थी,
डर गया दिल तेरे मेरे रुसवाई के डर से,
वरना हर शायरी में तेरा नाम दे सकती थी.
रजनी की कलम से .शेर शायरी.......gambhir
"भीगी है अब तलक मेरी कब्र की दीवारें,
लगता है अभी अभी कोई रो कर गया है "
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"हम जानते हैं सबको जन्नत नहीं मिलता,
पर ख्वाब सजाना "रजनी "कोई गुनाह तो नहीं."
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"लिख देते हम भी अफसाना जो बन जाता इतिहास
अफ़सोस कोई पत्तःर ही नहीं आया मेरे हाथ."
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"भीगी है अब तलक मेरी कब्र की दीवारें,
लगता है अभी अभी कोई रो कर गया है "
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"हम जानते हैं सबको जन्नत नहीं मिलता,
पर ख्वाब सजाना "रजनी "कोई गुनाह तो नहीं."
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"लिख देते हम भी अफसाना जो बन जाता इतिहास
अफ़सोस कोई पत्तःर ही नहीं आया मेरे हाथ."
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