" पलकें भिगाई है मैंने आज फिजाओं की , ख़ुद देर तलक रोने के बाद,
नफ़स(आत्मा) ना निकले कभी जिस्म से ,हर दुआ में थी यही फरियाद ."
"रजनी मल्होत्रा नैय्यर"
Saturday, October 2, 2010
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Kya gazab likha hai! Wah!
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