रजनी की कलम से .शेर शायरी.......gambhir
"भीगी है अब तलक मेरी कब्र की दीवारें,
लगता है अभी अभी कोई रो कर गया है "
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"हम जानते हैं सबको जन्नत नहीं मिलता,
पर ख्वाब सजाना "रजनी "कोई गुनाह तो नहीं."
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"लिख देते हम भी अफसाना जो बन जाता इतिहास
अफ़सोस कोई पत्तःर ही नहीं आया मेरे हाथ."
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"भीगी है अब तलक मेरी कब्र की दीवारें,
लगता है अभी अभी कोई रो कर गया है "
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"हम जानते हैं सबको जन्नत नहीं मिलता,
पर ख्वाब सजाना "रजनी "कोई गुनाह तो नहीं."
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"लिख देते हम भी अफसाना जो बन जाता इतिहास
अफ़सोस कोई पत्तःर ही नहीं आया मेरे हाथ."
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रजनी....थोडा ज्यादा सोचना होगा.....तब ज्यादा "कुछ" बात आ पाएगी.....!!बुरा मत मानना.....
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