Sunday, April 11, 2010

कितना सव्छ्न्द है ये सपना

कितना सव्छ्न्द है ये सपना ,
किसी भी पलकों पर अपना घर बना लेता है,
मिले ना मिले मंजिल ,
बस कर आबाद से निगाहों में फ़ना बना देता है .

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