Saturday, July 9, 2011

मंजिल मिले ना मरघट का पता

हमसे ना पूछो इस राह को क्या कहते हैं,

मंजिल मिले ना मरघट का पता,जो इस राह में रहते हैं,

मालूम है बस,इश्क में जिस्म से जान जुदा कर जीना कहते हैं.



'रजनी'

4 comments:

  1. मुझे क्षमा करे की मैं आपके ब्लॉग पे नहीं आ सका क्यों की मैं कुछ आपने कामों मैं इतना वयस्थ था की आपको मैं आपना वक्त नहीं दे पाया
    आज फिर मैंने आपके लेख और आपके कलम की स्याही को देखा और पढ़ा अति उत्तम और अति सुन्दर जिसे बया करना मेरे शब्दों के सागर में शब्द ही नहीं है
    पर लगता है आप भी मेरी तरह मेरे ब्लॉग पे नहीं आये जिस की मुझे अति निराशा हुई है

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  2. hardik aabhar dinesh ji par aajkal barsat me net kaam nahi kar raha jiske karan blog par nahi aa pa rahi...

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