Tuesday, September 14, 2010

मसीहा बन कर मेरा ज़ख़्म ,और भी गहरा कर गए

"ज़ख़्म हरा मेरा देख कर ,वो लाये मरहम साथ,
मसीहा बन कर मेरा ज़ख़्म ,और भी गहरा कर गए. "
"रजनी नैय्यर malhotra"

7 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत रचना ...दिल को छू गयी ..
    स्वागत के साथ vijayanama.blogspot.com

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  2. Wo dost bhi Hai dushman Bhi samajh me nahi aata,
    Kaatil usay kehna ki, Maseeha usay kehna|
    Ab zindagi kat ti nahi Tanha, usay usay kehna|

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