रजनी की कलम से .शेर शायरी.......
"भीगी है अब तलक मेरी कब्र की दीवारें,
लगता है अभी अभी कोई रो कर गया है "
**************************
"हम जानते हैं सबको जन्नत नहीं मिलता,
पर ख्वाब सजाना "रजनी "कोई गुनाह तो नहीं."
****************************
"कुछ कह गयी ये भीगी सी पवन मेरे कानों में,
अब तो हर रंजो गमों से अनजान हैं"
*****************************
गीला क्या करते वो हमसे ,
जिसने पल में खुद को,
बेगाना बना दिया,
वादा लिए फिरते थे वफाई का हमसे,
खुद बेवफाई से सिला दिया.
***********************
"अपने को छोड़ आई हूँ मै तुम्हारे पास,
अच्छा होता तुम खुद ही मुझे लौटा दो"
*********************************
"छोड़ दिया मझधार में आ कर हमने भी हाथ,
क्योंकि तमन्ना मुझे बचने से ज्यादा डूबने की थी."
***************************************
"लिख देते हम भी अफसाना जो बन जाता इतिहास
अफ़सोस कोई पत्तःर ही नहीं आया मेरे हाथ."
************************************
वो हर बाज़ी हमसे हारते गए,
मैंने अपनी जीत को जाहिर ना किया,
क्योंकि उसके टूटने का डर था हमें.
*********************************
क्या पाता है तू घर फूंक कर किसी का,
किसी के घर का चिराग बन कर देख.
*****************************
"मेरे मुकद्दर का लेख ,है यदि जंजीर,
जो बदल जाएगी ,तो तू इसे तोड़ के बता "
*********************************
मुनासिब नहीं सबको सागर मिले एक कतरा ही काफी है पीने के लिए,
पास हो चांदनी ये संभव नहीं उसकी रौशनी ही काफी है जीने के लिए.
*******************************************************
रूह में गहराइयों तक उतरती है कलाम ,
जब छूती है बिल्कुल पास से दिल को,
हर कलाम नहीं होता असर छोड़नेवाला,
कुछ खास होते हैं जो छाप छोड़ जाते हैं..
Tuesday, March 30, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
har nazm beshkimati.........
ReplyDeletebhaut bahut aabhar upendra ji .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ ।
ReplyDeleteबेहद अर्थपूर्ण ।
sundar shero-shairi
ReplyDelete